23 सितम्बर 2017 नई दिल्ली,
विधि आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति डॉ. बलबीर सिंह चौहान का मानना है कि भारतीय विधिक प्रणाली ‘इतनी जटिल’ और खर्चीली है कि गरीब लोग इस तक पहुंच ही नहीं पाते। उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश और आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति चौहान यहां ‘‘कैदियों के अधिकारों’ पर आयोजित एक संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि जमानत की शर्तें भी इतनी जटिल हैं कि किसी गरीब के पक्ष में किसी वकील के खडा होने तक उसे जेल में ही रह कर कानून में प्रदत्त पूरी सजा की अवधि गुजारनी होगी जबकि रईस व्यक्ति को ‘अग्रिम’ जमानत मिल जायेगी।
न्यायमूर्ति चौहान ने कहा, ‘‘सवाल यह है कि हमारी विधिक प्रणाली ओर जमानत की शर्तें इतनी जटिल हैं कि गरीब आदमी अदालतों में जाने का साहस ही नहीं कर सकता जबकि रईस व्यक्ति गिरफ्तारी से पहले ही जमानत के लिये अदालत पहुंच सकता है। उन्होंने न्याय व्यवस्था उपलब्ध कराने में रईसों और गरीबों के बीच इस भेदभाव के लिये ‘‘बड़े वकीलों’’ को भी जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा, ‘‘बड़े वकील किसी भी तरह के गंभीर अपराध का बचाव कर सकते हैं। मैं उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त हुआ हूं, यदि मेरा ही कोई मामला हो तो मैं उनकी सेवायें नहीं ले सकता। आजकल वे बहुत मंहगे हैं और वे टैक्सी की तरह प्रति घंटा, प्रति दिन के हिसाब से फीस लेते हैं।
न्यायमूर्ति चौहान ने स्थानीय अदालतों में अग्रेजी की बजाये क्षेत्रीय भाषाओं के इस्तेमाल की वकालत करते हुये कहा कि अंग्रेजी भाषा तो गरीब लोग समझ ही नहीं पाते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘हम स्थानीय अदालतों में क्षेत्रीय भाषा का प्रयोग करने में संकोच क्यों करते हैं। हम एक विदेशी भाषा बोलते हैं ताकि हमारा मुवक्किल यह नहीं समझ पाये कि क्या हमारी दलीलें प्रासंगिक हैं या नहीं। देश को आजादी मिलने के 70 साल से अधिक समय हो जाने के बाद भी अंग्रेजी के इस्तेमाल का सिर्फ यही मकसद है। इस संगोष्ठी का आयोजन तिहाड़ जेल ने पुलिस एवं विकास ब्यूरो, दिल्ली विश्वविद्यालय के स्कूल आफ सोशल वर्क और गैर सरकारी संगठन कामनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनीशिएटिव ने किया था। इस दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने भी संबोधित किया।
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