मृत्युभोज नहीं करेगा यादव समाज, लोगों ने लिया संकल्प

मृत्युभोज नहीं करेगा यादव समाज, लोगों ने लिया संकल्प

भिंड। उत्तरप्रदेश के इटावा के रहने वाले राज्यसभा सांसद बाबू दर्शन सिंह यादव की समझाइश पर भिंड के ऊमरी क्षेत्र के रूर गांव के 48 लोगों ने मृत्युभोज न करने का संकल्प लिया है। गांव के लोगों को इस सामाजिक कुरीति को छोड़ने के लिए सांसद ने अपने ऊपर से गुजरकर भोज में शामिल होने की चेतावनी दी थी। सांसद की बात का असर हुआ और तेरहवीं के स्थान पर सिर्फ शांति हवन किया गया।
उल्लेखनीय है कि सांसद यादव केंद्रीय समाज सुधार समिति के जरिए उत्तरप्रदेश और दिल्ली के जिलों में मृत्युभोज के खिलाफ अलख जगा रहे हैं। उन्होंने भिंड और मुरैना जिले में यादव समाज के बीच यह अभियान छेड़ा हुआ है।
यादव बाहुल्य रूर गांव में 28 अगस्त को 90 वर्षीय बुजुर्ग हीरालाल यादव का निधन हुआ। 2 सितंबर को उत्तरप्रदेश से 78 वर्षीय राज्यसभा सांसद बाबू दर्शन सिंह यादव गांव में आए। सांसद ने तेरहवीं की रस्म पर होने वाला मृत्युभोज नहीं करने के लिए कहा। पूरा गांव और मृतक के परिजन बोले, भोज नहीं करेंगे तो समाज में क्या मुंह दिखाएंगे।
सांसद ने कहा भोज करोगे तो मैं तेरहवीं के दिन रास्ते में लेट जाऊंगा, मुझे लांघकर भोज करने जाना। सांसद की बात से भोज का फैसला टल गया। शनिवार को सांसद 13वें दिन फिर गांव पहुंचे। मृत्युभोज के बजाए शांति हवन हुआ। सांसद के कहने पर 48 लोगों ने मृत्युभोज नहीं करने का संकल्प लिया।

मृतक के बेटे ने 1 दिन पहले टाला फैसला

मृतक हीरालाल यादव के 5 बेटे हैं। उनके निधन के बाद ग्रामीणों ने बेटों पर दबाव बनाया कि तेरहवीं भोज बड़े स्तर पर होना चाहिए। तैयारी शुरू हो गईं। इसी बीच 2 सितंबर को राज्यसभा सदस्य बाबू दर्शन सिंह यादव फेरा करने गए। उन्होंने स्वर्गीय यादव के परिजन और ग्रामीणों को इकट्ठा कर कहा मृत्युभोज नहीं करना। काफी समझाने पर मृतक के बेटे एक दिन पहले भोजन नहीं कराने पर राजी हुए।

शांति हवन कर 48 लोगों ने लिया संकल्प

इसके बाद रूर गांव में स्वर्गीय हीरालाल यादव के निधन के 13वें दिन शांति हवन का आयोजन किया गया। इस दौरान 48 लोगों ने ईश्वर को साक्षी मानकर जीवन में कभी भी मृत्युभोज नहीं करने का संकल्प लिया।
मृत्युभोज नहीं।

बुजुर्ग सांसद बाबू दर्शन सिंह यादव ने कहा कि मृत्युभोज से गरीब पर और विपदा आ जाती है। उन्होंने इस भोज को अमीरों द्वारा गरीबों पर लगाया गया सामाजिक टैक्स बताया।
बहुत पुरानी रूढिगत परंपराएं तोड़ने का समय आ गया है