सुरक्षा की कमी,आर्थिक लाभ एवं निर्धारित समय में ट्रायल पूरा न होना भी गवाहों को टूटने की मुख्य वजह
बदलते परिवेश में अपराध की प्रकृति के हिसाब से बदलाव की है जरूरत
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अदालत बगैर साक्ष्य के किसी को दोषी ठहरा नहीं सकती,पर गवाह ही नहीं खरे उतरेंगे तो अदालत क्या करेगी। गवाहों के मुकरने से मुकदमों के मुल्जिम कानूनी दांव-पेंच का फायदा उठाकर बरी हो जाते हैं। मुकरने के पीछे गवाहों को डर की वजह,आर्थिक लाभ एवं निर्धारित समय में मुकदमो का निस्तारण न होने की बातें सामने आती हैं। बदलते परिवेश के हिसाब से नये-नये तरीकों से अपराध हो रहे हैं आैर नये-नये तरीकों से गवाहों को तोड़ने का भी खेल खेला जा रहा है,जिस पर नियंत्रण पाने एवं सही मुल्जिमों को उनकी करनी का फल दिलाने के लिए इस परिवेश के अनुसार नियमों में भी बदलाव की जरूरत है।
आज कल देखा जा रहा है कि अदालतों में बड़े से बड़े अपराधों से जुड़े प्रकरण में निर्णय सामने आ रहे हैं। अधिकतर मामलों में गवाहों के मुकरने की वजह से मुकदमें के आरोपी बरी हो जा रहे हैं। कुछ मामलों में निर्दोषों को भी जेल काटने की बात सामने आती है। विधिक जानकारों की माने तो अलग-अलग प्रकृति के मुकदमों में अलग-अलग तरीके से अभियोजन के गवाहों को मैनेज कर,दबाव बनाकर एवं अन्य तरीकों से मुल्जिम पक्ष अपने वश में कर लेता है आैर मन मुताबिक गवाही पेश करा कर साफ बच जाता है। वर्तमान समय में चल रहे बचाव के तरीकों पर नियंत्रण पाने के लिए कानून में संशोधन की जरूरत भी महसूस हो रही है। दरअसल में जान बूझकर या अन्य किसी वजह से मुकदमों में गवाही से मुकरने पर कड़े दंड का प्रावधान नहीं है। जिसके चलते भविष्य मे मिलने वाले दंड की चिंता किये बगैर ही गवाह बेखौफ होकर अपनी झूठी गवाही कोर्ट में देते हैं। जिनकी इस गवाही से मुकदमा भी छूट जाता है आैर वह बगैर कोई कड़ा दंड पाये आसानी से बच भी जाते हैं। ऐसे लोगों को अपनी झूठी गवाही से कोर्ट के बहुमूल्य समय एवं समाज में बढ़ रहे अपराधों से कोई वास्ता नहीं है। उन्हें तो बस अपनी ही फिक्र है। विधिक जानकारों ने इस पर लगाम लगाने एवं इसकी वजह पर अपने विचार दिये हैं।
निर्धारित समय में ट्रायल पूरा न होने से टूटते हैं गवाह
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कोई भी अपराध होने पर पीड़ित या उनके करीबी मामला ताजा रहने पर केस दर्ज करा देते हैं आैर उनके अंदर दोषियों को उनके करनी के अंजाम तक पहुंचाने के लिए एक जोश भी होता है,लेकिन धीरे-धीरे अपनी परिस्थितियों के आगे एवं समय बदलने के चलते गवाह मुकदमों में रुचि रखना छोड़ देते हैं आैर वह अपने अंजाम से भटक कर सही बात अदालत में कहने से ही परहेज करते हैं। नतीजतन आरोपी छूट जाते हैं। जानकारों का कहना है कि मुकदमों का ट्रायल समय सीमा में बंधा हो तो तेजी से निपटारा होगा आैर गवाह भी टूटने का कम भय रहेगा।
सुरक्षा न मिलने से डरते हैं गवाह
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हत्या एवं जानलेवा हमले एवं प्रभावशाली लोगों से जुड़े समेत अन्य मामलों में गवाह मुकदमों में अपनी सही गवाही पेश करने का मन भी बनाते हैं तो उन्हें तोड़ने के लिए मुल्जिम पक्ष डराने व अन्य तरीके से तोड़ने का प्रयास करता है। ऐसे में पुलिस प्रशासन से गवाहों को समय पर बेहतर सुरक्षा न मिल पाने की वजह से भी गवाह अपने भविष्य की चिंता कर डर जाते हैं आैर अपराधियो के खिलाफ अदालत में सही बात नहीं रखते।
आर्थिक सहायता से जुड़े मुकदमों में बदलाव की जरूरत
----------------------------अपराधियों पर नियंत्रण पाने के लिए कुछ तरीके के अपराधों के लिए स्पेशल कानून भी बनाये गये हैं। जैसे कि एससी-एसटी एक्ट एवं किशोरियों से दुष्कर्म समेत अन्य मामलों में पीड़ित पक्ष केस दर्ज कराता है आैर इसमें सरकार की तरफ से पीड़ित पक्ष को अच्छी-खासी आर्थिक सहायता भी मिलती है,यही आर्थिक सहायता पा जाने के बाद मुकदमें के वादी एवं अन्य गवाहों की रुचि आरोपियों को सजा दिलाने के प्रति नहीं रह जाती। नतीजतन वह आर्थिक लाभ पा जाने के बाद अधिकतर मामलें में टूट जाते हैं। जिसका सीधा फायदा मुल्जिमों को मिलता है। ऐसे मामलों में झूठी गवाही देने पर या केस झूठा पाये जाने पर आर्थिक सहायता के रकम वापसी की व्यवस्था भी बने तो झूठे केस एवं गवाहों के मुकरने पर जरूर लगाम लगेगा।
पुलिस का कागजी खेल भी केस छूटने की वजह
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किसी भी अपराध में आरोपियो पर केस दर्ज करने से लेकर उन्हें जेल भेजने एवं साक्ष्य पेश कर उन्हें सजा दिलाने तक पुलिस का अहम रोल होता है। लेकिन जब यही पुलिस किसी पक्ष से प्रभावित होकर मुकदमो की तफ्तीश करती है तो केस का रुख ही बदल जाता है। कई गवाहों को तो पता ही नही रहता है कि पुलिस ने अपनी केस डायरी में उनका क्या बयान लिखा है,कुछ मनगढ़ंत कहानियां भी पुलिस मनमुताबिक ढंग से बना देती है। गवाहों का सही बयान न लिखने की वजह से कोर्ट में भी गवाह सही बातों को नही बोल पाता है और इसका लाभ मुल्जिम पक्ष को ही मिल जाता है।
मुकदमो में मुल्जिम निर्दोष तो दोषी कौन
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मुकदमो में गवाहों के पलटने से आरोपी बरी हो जाते है,लेकिन इस सवाल का जवाब हमेशा ही शेष रह जाता है कि अदालत के सामने आये मुल्जिम आखिर निर्दोष तो आखिर जो अपराध हो चुका है उसका असली दोषी कौन। मुकदमो का निस्तारण होने के बाद किसी को फुरसत भी नही है कि उसके विषय मे सोचें। उसी का नतीजा है कि मुकदमो का राज दफन ही रह जाता है और अपराधी बेखौफ होकर अपने मंसूबों को अंजाम देते रहते है।
इन सब नजीरों एवं व्यवस्थाओं के अलावा अन्य कई ऐसी वजहें हैं,जिससे आये दिन मुकदमें में गवाह सही बात कहने से मुकर रहे हैं। नतीजतन मुल्जिम बरी हो रहे हैं। जिसका सीधा असर समाज पर पड़ रहा है आैर अपराधों में बाढ़ सी आ गयी है। इस संबंध में डीजीसी क्रिमिनल तारकेश्वर सिंह का कहना है कि गंभीर अपराधों से जुड़े गवाहों को सुरक्षा का भरोसा मिले तो अदालतों में गवाहों के टूटने की संभावनाएं कम हो जायेगी। वहीं सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता रमेश चन्द्र सिंह का कहना है कि गवाहों के सुरक्षा के अलावा आर्थिक सहायता से जुड़े मामलों में झूठा केस पाये जाने पर आर्थिक सहायता की रकम वापस लिये जाने की व्यवस्था बनायी जाय एवं गवाही से मुकरने वाले लोगों के खिलाफ कड़े दंड का नियम बनाया जाय तो उससे गवाहों के टूटने की संभावनाएं निश्चित तौर पर कम हो जायेगी।
अभियोजन अधिकारी विजय कुमार सरोजका कहना है कि अदालतों में मुकदमो की संख्या काफी बढ़ गयी है। मुकदमों को तेजी से निपटाने के लिए व्यवस्था बने एवं गवाहों की सुरक्षा,आर्थिक सहायता से जुड़े मामलों में रकम वापसी एवं गवाही से मुकरने पर बने नियमो से हटकर उसमें संशोधन करते हुए कड़े दंड की व्यवस्था बनायी जाय तो निश्चित ही इस तरीके के मामलों में रोकथाम लगाया जा सकेगा। वरिष्ठ अधिवक्ता अरबिन्द सिंह राजा एवं पूर्व एडीजीसी अच्छेराम यादव ने भी इस सम्बंध में अपने विचार रखते हुए गवाहों की सुरक्षा, आर्थिक लाभ से जुड़े मामलों में केस झूठा पाये जाने पर रकम वापसी की व्यवस्था,गवाहों पर दबाव बनाने वालो को कड़ा दण्ड एवं ऐसे मुकदमो में गवाहो का साक्ष्य कराने में तेजी बरतने की व्यवस्था बनाने की बात कही।

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